Class 10th Social Science अध्याय - 10 स्वतन्त्रता आन्दोलन में मध्य प्रदेश का योगदान

स्वतन्त्रता आन्दोलन में मध्य प्रदेश का योगदान

सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.मध्य प्रदेश के किस स्वतन्त्रता सेनानी को राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ है?
(i) डॉ. शंकरदयाल शर्मा
(ii) पं. सुन्दरलाल
(iii) पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र
(iv) पं. शम्भूनाथ शुक्ल
उत्तर: (i) डॉ. शंकरदयाल शर्मा
प्रश्न 2. भोपाल के विश्वविद्यालय का नाम किस स्वतन्त्रता सेनानी के नाम पर रखा गया है?
(i) सेठ गोविन्ददास
(ii) बरकतउल्ला
(iii) हरीसिंह गौड़
(iv) रानी दुर्गावती।
उत्तर:(ii) बरकतउल्ला
प्रश्न 3. झण्डा सत्याग्रह मध्य प्रदेश के किस शहर से शुरू हुआ था?
(i) इन्दौर
(ii) सागर
(iii) जबलपुर
(iv) भोपाल।
उत्तर: (iii) जबलपुर

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. ग्राम ढीमरपुरा में हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से ……………….. ने निवास किया था।
  2. रानी अवन्तीबाई ……………….. जिले के रामगढ़ की रानी थीं।
  3. रानी लक्ष्मीबाई ने ……………….. की मदद से ग्वालियर पर अधिकार किया था।
उत्तर:-
  1. चन्द्रशेखर आजाद
  2. मण्डला
  3. तात्या टोपे।

सही जोड़ी मिलाइए:-

                स्तम्भ अ                           स्तम्भ ब
  1. जंगल सत्याग्रह                         (क) रीवा
  2. चावल आन्दोलन                       (ख) इन्दौर 
  3. सर्राफा काण्ड                           (ग) छतरपुर
  4. चरणपादुका गोलीकाण्ड                 (घ) सिवनी
उत्तर:-
  1. → (घ)
  2. → (क)
  3. → (ख)
  4. → (ग)

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. चन्द्रशेखर आजाद का जन्म कहाँ हुआ था ? 
उत्तर- चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाभरा ग्राम में हुआ। 
प्रश्न 2. मध्य प्रदेश में स्थापित संस्थाओं के नाम लिखिए।
उत्तर: राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान अनेक संस्थाओं ने आन्दोलन की गतिविधियों में संलग्न रहते हुए रचनात्मक कार्य भी किये। इनमें प्रमुख थे- ‘गुरुकुल’ 1929 (सतना), ‘हिन्दुस्तानी सेवा दल’ 1931, ‘चरखा संघ’ (रीवा), ‘ग्वालियर राज्य सेवा संघ’ तथा ‘हरिजन सेवक संघ’ 1935 (ग्वालियर), ‘लोक सेवा संघ’ 1939(खरगोन), ‘ग्राम सेवा कुटीर’ 1935(सेंधवा), ‘सेवा समिति’ (बेतूल), सेवामण्डल’ (रतलाम), ‘ज्ञान प्रकाश मण्डल’ (इन्दौर) आदि।
प्रश्न 3. आजाद हिन्द फौज के किस सेनानी का सम्बन्ध शिवपुरी जिले से था?
उत्तर: कर्नल गुरुबक्श सिंह ढिल्लन जिन पर आजाद हिन्द फौज में कार्य करने के कारण अभियोग चला था, मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के निवासी थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय चेतना की जागृति हेतु प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर: मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय चेतना की वृद्धि के लिए अनेक कारकों का सहयोग रहा, जिसमें समाचार-पत्रों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। उस समय ऐसे अनेक समाचार-पत्र प्रकाशित हुए, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की अन्यायी एवं दमनकारी नीति से जनता को आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। इनमें प्रमुख थे-‘कर्मवीर’, ‘अंकुश’, ‘सुबोध सिन्धु’ (खण्डवा), न्याय सुधा’ (हरदा), ‘आर्य वैभव’ (बुरहानपुर), ‘लोकमत’ (जबलपुर), ‘प्रजामण्डल पत्रिका’ (इन्दौर), ‘सरस्वती विलास’ (जबलपुर), साप्ताहिक आवाज’ एवं ‘सुबह वतन’ (भोपाल) आदि । ब्रिटिश शासन के प्रतिबन्धों के कारण जब समाचार-पत्र प्रकाशित नहीं हो सके, गुप्त रूप से बुलेटिन एवं परचों ने जनजागृति का कार्य किया।
प्रश्न 2. असहयोग आन्दोलन में मध्य प्रदेश की जनता ने अपना सहयोग किस प्रकार दिया?
उत्तर: असहयोग आन्दोलन में मध्य प्रदेश की जनता ने शराबबन्दी, तिलक स्वराज्य फण्ड, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, सरकारी शिक्षण संस्थाओं का त्याग कर राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं की स्थापना, हथकरघा उद्योग की स्थापना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में अपना योगदान दिया। वकीलों ने वकालत त्याग दी। जो वकील न्यायालय जाना चाहते थे, उन्होंने गांधी टोपी पहनकर न्यायालयों में प्रवेश किया। जिला समितियों ने शासकीय आज्ञाओं की अवहेलना कर भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराये जिससे लोगों की भय एवं अधीनता की मनोवृत्ति दूर हुई। इस आन्दोलन के समय साम्प्रदायिक सद्भावना की अभूतपूर्व मिसालें यहाँ देखने को मिली।
भोपाल, ग्वालियर, इन्दौर जैसी बड़ी-बड़ी रियासतों के अतिरिक्त छोटी रियासतों में भी असहयोग अन्दोलन के समय उत्साह दिखाई दिया। इस अवसर पर महात्मा गांधी जी ने छिन्दवाड़ा, जबलपुर, खण्डवा, सिवनी का दौरा कर जनता में अभूतपूर्व चेतना का संचार किया।
प्रश्न 3. जंगल सत्याग्रह क्या था? लिखिए।
उत्तर: जंगल सत्याग्रह-सन् 1930 में जब महात्मा गांधी ने दाण्डी मार्च कर नमक सत्याग्रह शुरू किया था, तब सिवनी के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दुर्गाशंकर मेहता के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह चलाया। सिवनी से 9-10 मील दूर सरकारी चन्दन बगीचों के जंगलों में घास काटकर यह सत्याग्रह किया जा रहा था। इसी सिलसिले में 9 अक्टूबर, 1930 की सिवनी जिले के ग्राम दुरिया में सत्याग्रह की तारीख निश्चित हुई। पुलिस दरोगा ओर रेंजर ने सत्याग्रहियों का समर्थन करने आये जनसम्प्रदाय के साथ बहुत अभद्र व्यवहार किया जिससे जनता उत्तेजित हो उठी। सिवनी के डिप्टी कमिश्नर के इस हुक्म पर कि ‘टीच देम ए लेसन’, पुलिस ने गोली चला दी। घटनास्थल पर ही तीन आदिवासी महिलाएँ व एक पुरुष शहीद हो गए। इस घटना से मध्य प्रदेश के गिरिजन समुदाय में भी स्वतन्त्रता की ज्योति प्रज्ज्वलित होने का पुष्ट प्रमाण मिलता है। इन शहीदों के शवों को भी उनके परिवारीजनों को अन्तिम संस्कार के लिए नहीं दिया गया।
प्रश्न 4. झण्डा सत्याग्रह किस प्रकार हुआ? वर्णन कीजिए।
                    अथवा
झण्डा सत्याग्रह को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर: झण्डा सत्याग्रह-राष्ट्रीय ध्वज किसी राष्ट्र की सम्प्रभुता, अस्मिता और गौरव का प्रतीक होता है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दिनों में चरखायुक्त तिरंगे झण्डे को यह सम्मान प्राप्त रहा है। 1923 में इस ध्वज की आन-बान-शान को लेकर ऐसा प्रसंग आया जिसमें न केवल राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्पूर्ण राष्ट्र की श्रद्धा में वृद्धि हुई वरन् अंग्रेजी हुकूमत तक को उसे मान्य करने पर विवश होना पड़ा। इतिहास के इस स्वर्णिम अध्याय को ‘झण्डा सत्याग्रह’ के नाम से जाना जाता है। असहयोग आन्दोलन की तैयारी के लिए गठित कांग्रेस की समिति जबलपुर आई, जिसके नेता हकील अजमल खाँ थे। जबलपुर कांग्रेस कमेटी ने तय किया कि खाँ साहब को अभिनन्दन पत्र भेंट किया जायेगा और जबलपुर नगरपालिका भवन पर राष्ट्रीय तिरंगा झण्डा फहराया जायेगा। इससे ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर भड़क उठा। उसने पुलिस को तिरंगे झण्डे को उतारने व पैरों से कुचलने का हुक्म दिया जिसका परिणाम तीव्र जनाक्रोश के रूप में फूटा और आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। विदेशी हुकूमत की अपमानजनक कार्यवाही के विरोध में पं. सुन्दरलाल, सुभद्रा कुमारी चौहान, नाथूराम मोदी, नरसिंहदास अग्रवाल आदि स्वयंसेवकों ने झण्डे के साथ जुलूस निकाला। पुलिस द्वारा सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। झण्डा सत्याग्रहियों की पहली टोली के पश्चात् दूसरी टोली ने जिसमें प्रेमचन्द, सीताराम जाधव, टोडरमल आदि थे, टाउन हॉल पर झण्डा फहरा दिया। यह आन्दोलन नागपुर तथा देश के अन्य भागों में फैला था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 1857 के संग्राम में मध्य प्रदेश क्षेत्र से सम्बन्धित सेनानियों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर: 1957 ई. की क्रान्ति में मध्य प्रदेश के सेनानियों का योगदान-1857 ई. की क्रान्ति का प्रारम्भ मध्य प्रदेश मंई महाकौशल क्षेत्र से उस समय हुआ जब एक भारतीय सैनिक ने अंग्रेजी सेना के एक अधिकारी पर प्राणघातक हमला किया था। इसके पश्चात् इस क्रान्ति का प्रारम्भ ग्वालियर, इन्दौर, भोपाल, सागर, जबलपुर, होशंगाबाद आदि में भी हुआ। मध्य प्रदेश में 1857 ई. की क्रान्ति में प्रमुख योगदान देने वाले क्रान्तिकारी तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई, अवन्तीबाई, राणा बख्तावर सिंह, शहीद नारायण सिंह तथा ठाकुर रणमत सिंह आदि थे।
1857 ई. के क्रान्तिकारियों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा तात्या टोपे का नाम विशेष उल्लेखनीय है। रानी लक्ष्मीबाई ने देशभक्त सैनिकों का नेतृत्व करते हुए ब्रिटिश सैनिकों को भयभीत कर दिया। झाँसी हाथ से निकल जाने पर लक्ष्मीबाई अपने साथी तात्या टोपे की सहायता से ग्वालियर पर अधिकार करने में सफल हुईं। उन्होंने बड़े उत्साह से ग्वालियर की जनता को जागृत किया। जब ब्रिटिश सेना ने उनके किले को घेर लिया तो वे बड़े उत्साह से अपनी सेना का संचालन करती हुईं, युद्ध क्षेत्र में उतर पड़ीं, परन्तु ब्रिटिश सेना के आघात से वे घायल हो गईं और उनका स्वर्गवास हो गया। उनके समान ही तात्या टोपे ने भी ब्रिटिश सेनाओं से युद्ध किया परन्तु एक विश्वासघाती षड्यन्त्र के कारण अंग्रेजों ने उन्हें बन्दी बनाकर फाँसी पर लटका दिया।
प्रश्न 2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन व भारत छोड़ो आन्दोलन का मध्य प्रदेश पर क्या प्रभाव पड़ा?
                                            अथवा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का मध्य प्रदेश पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:  सविनय अवज्ञा आन्दोलन :-अप्रैल 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ हुआ। 6 अप्रैल को जिस दिन गांधी जी ने दाण्डी में नमक कानून को तोड़ा, उसी दिन मध्य प्रदेश में आन्दोलन फैल गया। जबलपुर में सेठ गोविन्द दास और द्वारिका प्रसाद मिश्र के नेतृत्व में प्रदर्शन हुए। 8 अप्रैल को सीहोर, मण्डला, कटनी और दमोह में जुलूस निकले। मध्य प्रदेश में ऐसा कोई भी स्थान नहीं था जहाँ जनता ने सत्याग्रह में भाग न लिया हो। मध्य प्रदेश में जंगल कानून की अवज्ञा हुई। जंगल सत्याग्रह में आदिवासियों और ग्रामीण जनता ने तो खुलकर भाग लिया। पुलिस ने जंगल सत्याग्रहियों पर गोली चलायी। रियासतों की जनता ने भी गांधी द्वारा निर्देशित कार्यक्रम के अनुसार कानूनों की अवज्ञा की। नवयुवकों ने शिक्षा संस्थाओं को छोड़ दिया। सरकारी कर्मचारियों ने नौकरियाँ छोड़ दीं। स्त्रियों ने शराब की दुकानों पर धरने दिये। जैसे-जैसे आन्दोलन का विस्तार हुआ, सरकार ने दमन तीव्रता से किया, परन्तु इस आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि सरकार द्वारा आन्दोलन को दबाने के लिए हर सम्भव प्रयास करने के बावजूद सविनय अवज्ञा आन्दोलन का उत्साह कम नहीं हुआ।
        14 जुलाई, 1933 को गांधीजी के निर्देश का सामूहिक सत्याग्रह बन्द हो गया। उसके पश्चात् व्यक्तिगत सत्याग्रह चलता रहा। मध्य प्रदेश के अनेक सेनानी सत्याग्रह करते रहे। आन्दोलन से प्रभावित अन्य स्थानों पर भी सरकार ने अनेक लोगों को बन्दी बनाया, लाठीचार्ज किया और आन्दोलन को कुचलने का प्रयास किया। उसके पश्चात् 1942 तक पूरे मध्य प्रदेश में रचनात्मक कार्य हुए तथा अलग-अलग घटनाओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रभावित किया।
भारत छोड़ो आन्दोलन:- अगस्त 1942 में देश के राजनीतिक रंगमंच पर ‘भारत छोड़ो’ नामक ऐतिहासिक आन्दोलन की शुरुआत हुई। 8 अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव मुम्बई में होने वाली अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने पारित किया। 9 अगस्त को गांधीजी सहित सारे बड़े नेता बन्दी बनाये जा चुके थे। ऐसी स्थिति में रविशंकर शुक्ल, द्वारिकाप्रसाद मिश्र सहित सारे बड़े दमन के नग्न ताण्डव का सामना करने के लिए अपने प्रदेश वापस लौट आये। सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध रोष की लहर फैल गयी थी और जनता अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध उठ खड़ी हुई। स्कूल-कॉलेज तथा कारखाने हड़तालों के कारण बन्द हो गये। जगह-जगह जुलूस निकाले गये और प्रदर्शन हुए। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए सख्ती से काम लिया लेकिन जनता का उत्साह ठण्डा नहीं हुआ। उन्होंने ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति पाने का संकल्प किया था। अतः आन्दोलन अधिक तीव्र हो गया। कई स्थानों पर पुलिस थाने, डाकखाने व रेलवे स्टेशन जला दिये। टेलीफोन के तार काट डाले गये और रेल की लाइनें उखाड़ दी गयीं। कुछ स्थानों पर आन्दोलनकारियों ने शहरों और कस्बों पर भी अधिकार कर लिया था जिससे अंग्रेजी सत्ता डगमगाने लगी थी।
अंग्रेजी सरकार ने आन्दोलन को दबाने का हरसम्भव प्रयास किया। प्रेस की स्वतन्त्रता समाप्त कर दी गयी, आन्दोलनकारियों से जेलें भर दी गयीं और निहत्थी जनता पर गोलियाँ बरसाई गयीं जिससे हजारों लोग जान से मारे गये। विद्रोही जनता को अनेक प्रकार की यातनाएँ दी गयीं। अन्त में सरकार इस आन्दोलन को दबाने में सफल हो गयी। यह सत्य है कि ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आन्दोलन को निर्ममता से कुचल दिया था परन्तु इस आन्दोलन ने मध्य प्रदेश की जनता में जनजागृति उत्पन्न कर दी थी।
प्रश्न 3. टिप्पणी लिखिए:-
(क) बरकतुल्लाह भोपाली
(ख) चन्द्रशेखर आजाद
(ग) कुँवर चैनसिंह
(घ) टंट्या भील
(ङ) वीरांगना अवन्तीबाई
(च) ठाकुर रणमत सिंह।

उत्तर:
(क) बरकतुल्लाह भोपाली:- मोहम्मद बरकतुल्लाह भोपाली ने विदेशों में रहकर स्वतन्त्रता के लिए निरन्तर संघर्ष किया। काबुल में स्थापित की गई भारत की अन्तरिम सरकार (सन् 1915) में उन्हें प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया। मोहम्मद बरकतुल्लाह भोपाली ने अपने बेजोड़ साहस, देशभक्ति की अमिट लगन के साथ देश की आजादी के लिए कार्य किये। अमेरिका, जापान, काबुल में आजादी के संघर्ष में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही।
(ख) चन्द्रशेखर आजाद:- चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाभरा ग्राम में हुआ। वे 14 वर्ष की अल्प में असहयोग आन्दोलन से जुड़े। गिरफ्तार होने पर अदालत में उन्होंने अपना नाम आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतन्त्रता’ और घर का पता ‘जेलखाना’ बताया। तभी से चन्द्रशेखर के नाम के साथ ‘आजाद’ जुड़ गया।
क्रान्तिकारी विचारधारा के कारण वे लम्बे समय तक गांधीजी के मार्ग पर नहीं चल सके, वे क्रान्तिकारी श्रीगुप्त के सम्पर्क में आए और तदनन्तर पं. रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में उन्होंने युग की महान क्रान्तिकारी घटना काकोरी काण्ड’ में हिस्सा लिया। जब पुलिस ने आजाद का पीछा किया तो वे बचकर निकल गए।
उत्तर भारत की पुलिस आजाद के पीछे पड़ी हुई थी। दल के साथी विश्वासघात कर चुके थे, जिससे वे चिन्तित और क्षुब्ध थे। आजाद बचते-छिपते इलाहाबाद जा पहुँचे। 27 फरवरी, 1931 को वे अल्फ्रेड पार्क में बैठे हुए थे। दिन के दस बज रहे थे कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया। दोनों ओर से गोलियाँ चलने लगीं। आजाद ने पुलिस के छक्के छुड़ा दिए और जब उनकी पिस्तौल में एक गोली बची थी तब उसे अपनी कनपटी पर दागकर शहीद हो गए।
(ग) कुँवर चैनसिंह:- नरसिंहगढ़ के राजकुमार चैनसिंह को अंग्रेजों की सीहोर छावनी के पोलिटिकल एजेण्ट मैडाक ने अपमानित किया। इस पर चैनसिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ दिया। सीहोर के वर्तमान तहसील चौराहे पर चैनसिंह तथा अंग्रेजों के बीच सन् 1824 में भीषण लड़ाई हुई। अपने मुट्ठीभर वीर साथियों सहित अंग्रेजी सेना से मुकाबला करते हुए चैनसिंह सीहोर के दशहरा बाग वाले मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए।
(घ) टंट्या भील:- 1857 के महासमर के बाद मध्य प्रदेश के पश्चिमी निमाड़ में टंट्या भील ब्रिटिश सरकार के लिए आतंक . का पर्याय था। उसके साथी दोपिया और बिजनिया भी उसकी क्रान्तिकारी गतिविधियों में सहभागी थे। वर्षों तक जनजीवन में घुले-मिले रहकर गुप्त ढंग से क्रान्तिकारी कार्यवाहियों को अन्जाम दिया उन्होंने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया था। धोखे और षड्यन्त्रपूर्वक अंग्रेजों ने टंट्या को गिरफ्तार किया और उन्हें फाँसी पर लटका दिया। भीलों के बीच आज भी ट्टया प्रेरणास्वरूप मौजूद हैं।
(ङ) वीरांगना अवन्तीबाई:- रानी अवन्तीबाई (राजा लक्ष्मण सिंह की पत्नी) रामगढ़ में एक अत्यन्त योग्य एवं कुशल महिला थीं जो अपने पुत्र के नाम पर राज्य का योग्य प्रबन्धन व संचालन कर सकती थी। लेकिन उस समय अंग्रेजों की हड़प नीति चरम सीमा पर थी। रानी ने अपना विरोध प्रकट करते हुए रामगढ़ से अंग्रेजों द्वारा नियुक्त अधिकारी को निकाल भगाया और अपने राज्य का शासनसूत्र अपने हाथ में ले लिया। साथ ही उन्होंने जिले के ठाकुरों और मालगुजारों से समर्थन हेतु सम्पर्क स्थापित किया। आस-पास के अनेक जमींदारों ने उन्हें सहायता देने का वचन दिया।
रानी सैनिक वस्त्र व तलवार धारण कर स्वयं अपने सैनिकों का रणक्षेत्र में नेतृत्व करती थी। अप्रैल 1858 में अंग्रेजों की सेना ने रामगढ़ पर दोनों ओर से आक्रमण किया, इस कारण रानी अपनी सेना सहित पास के जंगल में चली गई। वहाँ से रानी अंग्रेजों पर निरन्तर आक्रमण करती रहीं, परन्तु इनमें से एक आक्रमण घातक सिद्ध हुआ। जब उन्होंने देखा कि वह घिर गईं और उनका पकड़ा जाना निश्चित है तो उन्होंने वीरांगनाओं की गौरवशाली परम्परा के अनुरूप बन्दी होने की अपेक्षा मृत्यु को श्रेष्ठतर समझा और क्षणमात्र में अपने घोड़े से उतरकर अपने अंगरक्षक के हाथ से तलवार छीनकर उसे अपनी छाती में घोंप कर हँसते-हँसते मातृभूमि के लिए बलिदान दे दिया।
(च) ठाकुर रणमत सिंह:- 1857 में सतना जिले के मनकहरी गाँव के निवासी ठाकुर रणमत सिंह ने भी अंग्रेजों से जमकर संघर्ष किया। पोलिटिकल एजेण्ट की गतिविधियों से क्षुब्ध होकर ठाकुर रणमत सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध झण्डा उठाया, उन्होंने अपने साथियों के साथ चित्रकूट के जंगल में सैन्य संगठन का कार्य कर नागौद की अंग्रेज रेजीडेन्सी पर हमला कर दिया। वहाँ के रेजीमेण्ट भाग खड़े हुए। कुछ समय बाद नौगाँव छावनी पर भी धावा बोला एवं बरोधा में अंग्रेज सेना की एक टुकड़ी का सफाया कर डाला। ठाकुर रणमत सिंह पर 2,000 रु. का पुरस्कार घोषित किया गया। लम्बे समय तक अंग्रेजों से संघर्ष करने के पश्चात् जब रणमत सिंह अपने मित्र के घर विश्राम कर रहे थे, तब धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 1859 में फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.चरणपादुका गोलीकाण्ड हुआ था
(i) 10 जनवरी, 1895
(ii) 14 जनवरी, 1931
(iii) 25 जनवरी, 1934
(iv) 14 फरवरी, 1938
उत्तर: (ii) 14 जनवरी, 1931
प्रश्न 2. राज्य प्रजामण्डल का गठन कब किया गया?
(i) सन् 1943 में
(ii) 1941 में
(iii) सन् 1935 में
(iv) सन् 1932 में
उत्तर: (i) सन् 1943 में
प्रश्न 3.गुरिल्ला पद्धलि से अंग्रेजों से युद्ध किया
(i) राजा लक्ष्मन सिंह ने
(ii) बख्तावर सिंह ने
(iii) तात्या टोपे ने
(iv) गंजन सिंह कोरकू ने
उत्तर: (iii) तात्या टोपे ने

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. मध्य प्रदेश के पश्चिमी निमाड़ में ……………… ब्रिटिश सरकार के लिए आतंक का पर्याय था।
  2. कर्नल गुरुबक्श सिंह ढिल्लन मध्य प्रदेश के ………………. जिले के निवासी थे।
उत्तर:-
  1. टंट्या भील
  2. शिवपुरी।

सत्य/असत्य

प्रश्न  1.रानी लक्ष्मीबाई का शहीद स्थल झाँसी में है।
उत्तर: असत्य
प्रश्न  2.राजा बख्तावर को इन्दौर में फाँसी दी गई।
उत्तर: सत्य
प्रश्न  3. झण्डा आन्दोलन नागपुर तथा देश के अन्य भागों में फैल गया।
उत्तर: सत्य
प्रश्न  4. चरणपादुका गोलीकाण्ड को मध्य प्रदेश का जलियाँवाला बाग के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर: सत्य
प्रश्न  5. टंट्या भील ब्रिटिश सरकार के लिए आतंक का पर्याय था।
उत्तर: सत्य

जोड़ी मिलाइए:-

             स्तम्भ अ                          स्तम्भ ब
  1. चरखा संघ                          (क) जबलपुर
  2. ज्ञान प्रकाश मण्डल                 (ख) रीवा
  3. लोकमत                            (ग) इन्दौर
उत्तर:-
  1. → (ख)
  2. → (ग)
  3. → (क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1. म. प्र. का ‘जलियाँवाला बाग’ किसे कहा जाता है?
उत्तर: चरणपादुका गोलीकाण्ड
प्रश्न 2. मण्डला जिले के रामगढ़ की रानी का नाम लिखिए।
उत्तर: रानी अवन्तीबाई
प्रश्न 3. ठाकुर रणमत सिंह मध्य प्रदेश के किस जिले से सम्बन्धित थे?
उत्तर: सतना
प्रश्न 4. भीलों के बीच आज भी प्रेरणास्वरूप याद किया जाता है?
उत्तर: टंट्या भील
प्रश्न 5. चन्द्रशेखर आजाद की क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र कौन-सा स्थान था?
उत्तर: नगर ओरछा
प्रश्न 6. चन्द्रशेखर आजाद का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर: मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाभरा ग्राम में।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय आन्दोलन किन स्थानों में अत्यधिक सक्रिय रहा?
उत्तर: मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय आन्दोलन इन्दौर, उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, रतलाम, धार तथा शिवपुरी स्थानों पर अत्यधिक सक्रिय रहा।
प्रश्न 2. मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर: तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई, रानी अवन्तीबाई, राणा बख्ताबर सिंह, वीर नारायण तथा ठाकुर रणमत सिंह मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख नेता थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. घोड़ा-डोंगरी का जंगल सत्याग्रह की प्रमुख घटनाएँ बताइए।
उत्तर: घोड़ा-डोंगरी का जंगल सत्याग्रह-आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला स्वतन्त्रता आन्दोलन का प्रमुख केन्द्र रहा है और यहाँ के वनवासियों ने पराधीनता के विरुद्ध संघर्ष किया। सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह के समय बैतूल के आदिवासी समुदाय ने आन्दोलन की मशाल थाम ली। शाहपुर के समीप बंजारी ढाल का गंजन सिंह कोरकू आदिवासियों का नेता था। जब पुलिस गंजन सिंह को गिरफ्तार करने बंजारी ढाल पहुँची तो आदिवासियों ने प्रबल प्रतिरोध खड़ा कर दिया। आदिवासियों पर पुलिस ने गोलियाँ बरसाईं, जिसमें कोमा गोंड घटनास्थल पर ही शहीद हो गया। गंजन सिंह पुलिस का घेरा तोड़कर निकल गया। उधर जम्बाड़ा में पुलिस की गिरफ्त से आदिवासियों को मुक्त कराने के लिए एकजुट भीड़ पर पुलिस के बर्बर बल प्रयोग में राम तथा मकडू गोंड शहीद हो गये।
प्रश्न 2. चरणपादुका गोलीकाण्ड को बताइए।
उत्तर: चरणपादुका गोलीकाण्ड-14 जनवरी, 1931 को मकर संक्रान्ति के दिन छतरपुर रियासत में उर्मिल नदी के किनारे चरणपादुका में स्वतन्त्रता सेनानियों की एक विशाल सभा चल रही थी। बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे। नौगाँव स्थित अंग्रेज पोलिटिकल एजेण्ट के हुक्म पर बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ चला दी गई, जिसमें अनेक लोग मारे गये। मध्य प्रदेश का जलियाँवाला बाग कहे जाने वाले इस लोमहर्षक काण्ड में सरकार ने छः स्वतन्त्रता सेनानी-सेठ सुन्दरलाल, धरमदास खिरवा, चिरकू, हलके कुर्मी, रामलाल कुर्मी और रघुराज सिंह का पुलिस गोली से शहीद होना स्वीकारा।।
प्रश्न 3. राष्ट्रीय आन्दोलन के समय मध्य प्रदेश की शासन व्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर: राष्ट्रीय आन्दोलन के समय मध्य प्रदेश की शासन व्यवस्था-राष्ट्रीय आन्दोलन के समय मध्य प्रदेश दो प्रकार की शासन व्यवस्थाओं से संचालित रहा। जबलपुर, मण्डला, सागर, बैतूल, छिन्दवाड़ा, होशंगाबाद, खण्डवा और इनसे जुड़े हुए क्षेत्र सीधे ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत थे। ये क्षेत्र मध्य प्रान्त के अंग थे। ब्रिटिश शासन के अधीन इन क्षेत्रों में जनता अत्यधिक कष्ट में थी और राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद इन स्थानों पर इसकी शाखाओं की स्थापना हुई। अतः राष्ट्रीय आन्दोलन में इन स्थानों पर अधिक सक्रियता दिखायी दी। वर्तमान मध्य प्रदेश के शेष भाग में देशी रियासतों का शासन था। इन्दौर, ग्वालियर, रीवा, देवास, भोपाल आदि अनेक स्थानों की देशी रियासतें अंग्रेजों के संरक्षण में थीं। 1857 की क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने देशी रियासतों के शासकों के प्रति नरम नीति अपनायी। इसके अतिरिक्त रियासतों की जनता रियासती शासन व्यवस्था से अपेक्षाकृत सन्तुष्ट थी। अतः रियासतों में राष्ट्रीय आन्दोलन से सम्बन्धित गतिविधियाँ अपेक्षाकृत मन्द गति में रहीं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय आन्दोलन किन स्थानों पर अधिक सक्रिय रहा? एक लेख लिखिए।
उत्तर: मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय आन्दोलन के मुख्य केन्द्र
जबलपुर – स्वाधीनता आन्दोलन में जबलपुर का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा। राबर्टसन कॉलेज के छात्र चिदम्बरम् पिल्लई तथा उसके साथियों ने यहाँ क्रान्तिकारी दल का संगठन किया। पिल्लई इतिहास प्रसिद्ध ‘कामा गाटा मारू’ काण्ड से सम्बन्धित थे। सन् 1916 एवं सन् 1917 में लोकमान्य तिलक जबलपुर आये थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी 1921 में जबलपुर आगमन हुआ। जबलपुर के नागरिकों ने स्वराजनिधि कोष के लिए 20,000 रुपये की धनराशि भेंट की थी। झण्डा सत्याग्रह का प्रारम्भ जबलपुर से ही हुआ था। नमक सत्याग्रह के समय सेठ गोविन्ददास व पण्डित द्वारिका प्रसाद ने जबलपुर में नमक का कानून तोड़ा। सन् 1942 के आन्दोलन में भी जबलपुर में हड़ताल की गई और जुलूस निकाले गए। सन् 1945 में जबलपुर में स्थित भारतीय सिगनल कोर के जवानों ने मुम्बई की रॉयल इण्डियन नेवी के विद्रोह की सहानुभूति के पक्ष में हड़ताल की और अपनी बैरकें छोड़कर बड़ा जुलूस निकाला।
इन्दौर – 20वीं शताब्दी के आरम्भ में राजनीतिक चेतना का नया दौर इन्दौर में शुरू हुआ। 1907 में ज्ञान प्रकाश मण्डल स्थापित किया गया, जिसमें राष्ट्रीय विचारों के प्रचार का काम प्रारम्भ किया। सन् 1918 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन गांधीजी की अध्यक्षता में इन्दौर में हुआ। गांधीजी की यात्रा से इन्दौर में राष्ट्रीय विचारों को बल मिला। कांग्रेस की शाखा की स्थापना इन्दौर में सन् 1920 में हुई। इन्दौर में स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का प्रचार हुआ। कन्हैयालाल खादीवाला ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत छोड़ो आन्दोलन में भी इन्दौर की जनता ने पूरे जोश के साथ भाग लिया। बड़ी संख्या में प्रजामण्डल, मजदूर संघ, कांग्रेस तथा महिला संगठनों के देशभक्त जेलों में बन्द रहे। जनता ने उग्र संघर्ष किया। सितम्बर 1947 में इन्दौर में उत्तरदायी शासन स्थापित हुआ।
भोपाल – सन् 1934 में भोपाल में राजनैतिक गतिविधियाँ आरम्भ हुईं। इसी वर्ष शाकिर अली खान ने ‘सुबहे वतन’ उर्दू साप्ताहिक और भोपाल राज्य की हिन्दू सभा ने ‘प्रजा पुकार’ हिन्दी साप्ताहिक निकाले। सन् 1938 में भोपाल के हिन्दू और मुसलमान नेताओं से मिलकर प्रजामण्डल की स्थापना की। सन् 1939 में गांधीजी भोपाल आये थे। सन् 1946 में प्रजामण्डल एवं भोपाल नवाब के बीच समझौता हो गया। सन् 1946 में ही भोपाल नगर में विलीनीकरण के समर्थन में जोर-शोर से आन्दोलन प्रारम्भ हुआ।
मास्टर लाल सिंह, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, सूरजमल जैन, प्रेम श्रीवास्तव आदि की गिरफ्तारियाँ हुईं। इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। शासन ने भारी यातनाएँ दीं। अत्याचारों के विरोध में 22 दिनों तक बाजारों में पूर्ण हड़ताल रही। बरेली, सीहोर, उदयपुरा आदि तहसीलों में आन्दोलन आग की तरह फैल गया। उदयपुरा तहसील में बोरासघाट में लोमहर्षक गोलीकाण्ड हुआ जिसमें चार वीर नवयुवक शहीद हो गये। इस घटना से तहलका मच गया। मन्त्रिमण्डल को भंग कर दिया गया। नवाब से चार माह वार्ता चलने के पश्चात् 1 जून, 1946 को भोपाल रियासत केन्द्र में विलीन हो गई।
विन्ध्य क्षेत्र – विन्ध्य क्षेत्र में रीवा राज्य राष्ट्रीय आन्दोलन में सबसे आगे रहा। सन् 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के पश्चात् बघेल खण्ड में कांग्रेस के संगठन का कार्य शुरू हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय रीवा के राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं पर अत्याचार किये गये। सन् 1943 में राज्य प्रजामण्डल का गठन हुआ और छतरपुर में कार्यालय की स्थापना की गई भारत स्वतन्त्र होने के पश्चात् विन्ध्य क्षेत्र की रियासतों ने केन्द्रीय सरकार में विलीन होने के संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।
ग्वालियर – ग्वालियर तो क्रान्तिकारियों का गढ़ था। सन् 1930 में ग्वालियर में विदेशी वस्त्र बहिष्कार संस्था बनायी गयी। विदेशों से हथियार प्राप्त कर क्रान्तिकारियों तक पहुँचाने के सम्बन्ध में सन् 1932 में ग्वालियर-गोवा षड्यन्त्र काण्ड हुआ इसमें बालकृष्ण शर्मा, गिरधारी सिंह, रामचन्द्र सरबटे, स्टीफन जोसेफ को दण्डित किया गया। सन् 1937 में राजनैतिक कारणों के लिए ग्वालियर राज्य सार्वजनिक सभा ने कार्य प्रारम्भ किया। सन् 1942 के भारत छोड़ो
आन्दोलन का सार्वजनिक सभा ने समर्थन किया तथा विशाल प्रदर्शनी और हड़तालें कीं।
उपर्युक्त मुख्य स्थानों के अतिरिक्त अनेक छोटे-छोटे नगरों और कस्बों में राष्ट्रीय आन्दोलन तीव्रता से फैला जिनमें प्रमुख निम्न हैं-धमतरी, मण्डला, दमोह, नरसिंहपुर, झाबुआ, धार, मन्दसौर, भानपुर, छिन्दवाड़ा, सागर, ओरछा, रतलाम, विदिशा आदि।
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