Class 10th Social Science अध्याय - 21 वैश्वीकरण

वैश्वीकरण

सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1. वैश्वीकरण ने जीवन-स्तर में सुधार किया है
(i) गरीब वर्ग का
(ii) उच्च वर्ग का
(iii) ग्रामीण क्षेत्रों का
(iv) समाज के सभी वर्गों का।
उत्तर: (ii) उच्च वर्ग का
प्रश्न  2. वैश्वीकरण से कौन-से उद्योग बन्द हो गए हैं?
(i) बड़े पैमाने के उद्योग
(ii) बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ
(iii) लघु उद्योग
(iv) सभी प्रकार के उद्योग।
उत्तर: (iii) लघु उद्योग
प्रश्न  3. भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई है –
(i) सन् 1947 में
(ii) सन् 1951 में
(iii) सन् 1991 में
(iv) सन् 2001 में
उत्तर: (iii) सन् 1991 में
प्रश्न  4. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई है –
(i) सन् 1985
(ii) सन् 1995
(iii) सन् 2001
(iv) सन् 2005
उत्तर: (ii) सन् 1995
प्रश्न  5. वैश्वीकरण का मुख्य आधार है
(i) विदेशी व्यापार
(ii) आन्तरिक व्यापार
(iii) उन्नत कृषि व्यापार
(iv) लघु उद्योग।
उत्तर: (i) विदेशी व्यापार

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. वर्तमान में आरक्षित उद्योगों की संख्या ……………. है।
  2. वैश्वीकरण के अन्तर्गत विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के मध्य वस्तुओं एवं सेवाओं का ……………. आवागमन होता है।
  3. विभिन्न देशों में उत्पादन करने वाली कम्पनियों को ……………. कहा जाता है।
उत्तर:-
  1. तीन
  2. एक देश से दूसरे देश में
  3. बहुराष्ट्रीय कम्पनी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वर्ष 1991 से पूर्व भारत के विदेशी व्यापार की नीति क्या थी?
उत्तर: वर्ष 1991 तक आयातों पर नियन्त्रण रखा गया। इस अवधि में केवल अनिवार्य वस्तुओं; जैसे-मशीनरी, उर्वरक और पेट्रोलियम का ही मुख्य रूप से आयात किया गया। देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतियोगिता से बचाए रखने के लिए संरक्षण की नीति को अपनाया गया। परिणामस्वरूप इस अवधि में व्यापार धीमी गति से बढ़ा।
प्रश्न 2. एक से अधिक देशों में उत्पादन करने वाली कम्पनियों को क्या कहा जाता है?
उत्तर-एक से अधिक देशों में उत्पादन करने वाली कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनी कहा जाता है।
प्रश्न 3. वैश्वीकरण से किस उपभोक्ता वर्ग को अधिक लाभ हुआ है?
उत्तर: वैश्वीकरण का लाभ समाज के सभी उपभोक्ता वर्गों को नहीं मिला है। समाज के शिक्षित. कशल और सम्पन्न उपभोक्ता वर्ग के लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वाधिक एवं सर्वोत्तम उपयोग किया है। इसके विपरीत अशिक्षित एवं निर्धन उपभोक्ता वर्ग को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समाज का कमजोर एवं निर्धन उपभोक्ता वर्ग वैश्वीकरण के लाभों से प्रायः वंचित ही रहा है।
प्रश्न 4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी वह है जो एक से अधिक राष्ट्रों में उत्पादन करती हैं। ये कम्पनियाँ बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं और उत्पादित वस्तुओं को अनेक राष्ट्रों में बेचती हैं।

लघु उत्तराय प्रश्न

प्रश्न 1. विदेशी व्यापार क्या है?
उत्तर: विदेशी व्यापार से आशय-“विदेशी व्यापार से आशय दो या दो से अधिक पृथक् सत्ताधारी राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय से है।” यदि क्रेता और विक्रेता अलग-अलग सत्ताधारी देशों में रहते हों तो उनके बीच हुआ क्रय-विक्रय विदेशी व्यापार कहलाता है। इस प्रकार विदेशी व्यापार में वस्तुएँ एक देश की सीमाओं को पार करके दूसरे देश की सीमाओं में प्रवेश करती हैं। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश तथा भारत के बीच होने वाला व्यापार विदेशी व्यापार कहलायेगा। विदेशी व्यापार तीन प्रकार का होता है –
आयात व्यापार – आयात व्यापार से आशय दूसरे राष्ट्रों में माल अपने देश में मँगवाने से है।
निर्यात व्यापार – निर्यात व्यापार से आशय अपने देश से विदेशों को माल भेजे जाने से है।
निर्यात हेतु आयात – जब वस्तुएँ किसी एक देश में दूसरे देश से स्थानीय उपयोग के लिए आयात नहीं की गई हों वरन् वहाँ से किसी अन्य देश को निर्यात करने के उद्देश्य से आयात की गई हों, तो ऐसे व्यापार को “निर्यात हेतु आयात” कहते हैं।
प्रश्न 2. बाजारों का एकीकरण क्या है?
उत्तर:बढ़ते हुए विदेशी व्यापार के कारण विभिन्न राष्ट्रों के बाजारों एवं उनमें बेची जाने वाली वस्तुओं में एकीकरण हुआ है। विदेशी व्यापार की बढ़ती हुई प्रवृत्ति ने अब विभिन्न राष्ट्रों के बाजारों को बहुत निकट ला दिया है। उन्नत प्रौद्योगिकी ने इस निकटता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है और सम्पूर्ण विश्व को एक बड़े गाँव में बदल दिया है। यही वैश्वीकरण है, जहाँ विभिन्न राष्ट्रों के बाजार परस्पर जुड़कर एक इकाई के रूप में कार्य करते हैं। इससे सम्पूर्ण विश्व में बाजार शक्तियाँ स्वतन्त्र रूप से कार्य करने लगती हैं और परिणामस्वरूप वस्तुओं की कीमत सभी राष्ट्रों में लगभग समान हो जाती है। इस प्रकार वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व के बाजारों का एकीकरण हो जाता है।
प्रश्न 3. वैश्वीकरण का छोटे उत्पादकों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर: वैश्वीकरण का छोटे उत्पादकों पर प्रभाव-छोटे उत्पादकों पर वैश्वीकरण का बुरा प्रभाव पड़ा है। विदेशी उत्पादित माल से प्रतियोगिता करने में छोटे उद्योग सक्षम नहीं हैं। परिणामस्वरूप अनेक छोटे उद्योग बन्द हो गए हैं। बैटरी, संधारित्र, प्लास्टिक, खिलौने, टायर, डेयरी उत्पादों एवं खाद्य तेल के उद्योगों की स्थिति अत्यधिक खराब है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत में लघु उद्योगों में कृषि के बाद सबसे अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले कारणों की विवेचना कीजिए।
                                                अथवा
वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाले प्रमुख चार कारक लिखिए।

उत्तर: वैश्वीकरण का आशय – वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने से लगाया जाता है। इसमें प्रत्येक राष्ट्र का अन्य राष्ट्रों के साथ वस्तु, सेवा, पूँजी एवं बौद्धिक सम्पदा का अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान होता है। यह वस्तुतः खुली अर्थव्यवस्था की विचारधारा पर आधारित है जिसमें विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के मध्य व्यापारिक दृष्टिकोण से सार्वजनिक सीमाओं को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है, बल्कि व्यापारिक लेन-देन या तो स्वतन्त्र रूप से या सीमित नियन्त्रण के अधीन चलते रहते हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत सभी व्यापारिक क्रियाओं का अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो जाता है और वे एक इकाई के रूप में कार्य करने लगती हैं।
वैश्वीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं –
  1. तकनीक – पिछले पाँच दशकों में तकनीक ज्ञान का तेजी से विकास हुआ है। परिवहन प्रौद्योगिकी ने अब लम्बी दूरियों तक वस्तुओं को कम लागत पर भेजना सम्भव बनाया है दूरसंचार सुविधाओं; जैसे-इन्टरनेट, मोबाइल फोन, फैक्स आदि ने विश्व भर में एक-दूसरे से सम्पर्क करने के कार्य को आसान बना दिया है। संचार उपग्रहों ने इन सुविधाओं का विस्तार कर क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया है जिससे वैश्वीकरण का तेजी से विस्तार हुआ है।
  2. प्रतियोगिता – पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में प्रतियोगिता का विशेष महत्त्व होता है। इस प्रणाली में विभिन्न उत्पादक कम्पनियाँ बाजारों पर कब्जा करने का उद्देश्य से प्रतियोगिता का सहारा लेती हैं। इसके लिए ये कम्पनियाँ कीमत कम करने के साथ-साथ विज्ञापनों एवं प्रचार-प्रसार के विभिन्न माध्यमों का उपयोग करती हैं।
  3. बाजार का विस्तार – पिछले कुछ वर्षों में उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि, उपभोक्ता प्रवृति, रुचि एवं आदतों में परिवर्तन आदि से वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग में वृद्धि हुई है। प्रौद्योगिकी के विकास से उत्पादनों की किस्म एवं गुणवत्ता में सुधार हुआ है। फलतः नई-नई वस्तुओं का उत्पादन सम्भव हुआ है जिससे बाजारों का विस्तार हुआ है।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का विस्तार – बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पहली विशेषता यह है कि इनकी क्रियाएँ किसी राष्ट्र में सीमित न होकर अनेक राष्ट्रों में चलती हैं। ये कम्पनियाँ उन राष्ट्रों में उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम एवं अन्य साधन मिलते हैं। इससे उत्पादन लागत में कमी आती है तथा कम्पनियों की प्रतियोगिता करने की क्षमता बढ़ जाती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ केवल वैश्वीकरण स्तर पर ही अपने उत्पादन नहीं बेचीं वरन अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि वे वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन विश्व स्तर पर करती हैं।
  5. उदारीकरण की प्रक्रिया – बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः राष्ट्रों की सीमाओं के अन्दर ही सीमित था। अनेक राष्ट्रों ने अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं को विदेशी प्रतियोगिता से बचाने के लिए अनेक प्रकार के कठोर प्रतिबन्ध लगा दिये थे। किन्तु 1970 एवं 1990 के दशकों में अनेक ऐसे परिवर्तन हुए जिनसे ‘विदेशी व्यापार को उदार बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। सन् 1995 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद प्रायः विश्व के सभी राष्ट्रों ने अपने आयात करों में कमी की है और अपने राष्ट्रों के बाजार को अन्य राष्ट्रों के लिए खोल दिया है। परिणामस्वरूप वैश्वीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला है।
प्रश्न 2. विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार मदद करता है? लिखिए।
उत्तर: विदेशी व्यापार ने आज विश्व के देशों को परस्पर जोड़ दिया है। विश्व की अनेक बड़ी कम्पनियाँ । जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कहा जाता है, अपने उत्पादों की बिक्री अनेक राष्ट्रों में करती हैं। ये कम्पनियाँ बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं और उत्पादित वस्तुओं को सभी देशों में बेचती हैं।
बढ़ते हुए विदेशी व्यापार के कारण विभिन्न राष्ट्रों के बाजार एवं उनमें बेची जाने वाली वस्तुओं में एकीकरण हुआ है। विदेशी व्यापार की बढ़ती हुई प्रवृत्ति ने अब विभिन्न राष्ट्रों के बाजारों को बहुत निकट ला दिया है।
बाजारों का एकीकरण – बढ़ते हुए विदेशी व्यापार के कारण विभिन्न राष्ट्रों के बाजारों एवं उनमें बेची जाने वाली वस्तुओं में एकीकरण हुआ है। विदेशी व्यापार की बढ़ती हुई प्रवृत्ति ने अब विभिन्न राष्ट्रों के बाजारों को बहुत निकट ला दिया है। उन्नत प्रौद्योगिकी ने इस निकटता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है और सम्पूर्ण विश्व को एक बड़े गाँव में बदल दिया है। यही वैश्वीकरण है, जहाँ विभिन्न राष्ट्रों के बाजार परस्पर जुड़कर एक इकाई के रूप में कार्य करते हैं। इससे सम्पूर्ण विश्व में बाजार शक्तियाँ स्वतन्त्र रूप से कार्य करने लगती हैं और परिणामस्वरूप वस्तुओं की कीमत सभी राष्ट्रों में लगभग समान हो जाती है। इस प्रकार वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व के बाजारों का एकीकरण हो जाता है।
प्रश्न 3. वैश्वीकरण के बाद भारत की आर्थिक स्थिति की व्याख्या कीजिए व वैश्वीकरण से उत्पन्न समस्याओं की विवेचना कीजिए।
                                                अथवा
वैश्वीकरण से उत्पन्न प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर: वैश्वीकरण के बाद भारत की आर्थिक स्थिति
वर्ष 1991 के बाद देश की अर्थव्यवस्था में हुए सुधार एवं वैश्वीकरण के प्रभाव निम्नलिखित हैं –
  1. आयात-निर्यात – वर्ष 1991 में घोषित आयात-निर्यात नीति में निर्यात के विकास पर जोर दिया गया। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु आयात एवं निर्यात पर लगे प्रतिबन्धों को कम किया गया। व्यापार नीति (2004-09) में आयातों एवं निर्यातों को और अधिक सुविधाजनक बनाया गया है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत विश्व व्यापार संगठन का प्रारम्भ से ही सदस्य है। पिछले वर्षों में आयात शुल्क कम करने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है। कुल विश्व व्यापार में भारत के विदेशी व्यापार का योगदान वर्ष 1990 में 0.6 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2013 में 2.1 प्रतिशत हो गया।
  2. औद्योगीकरण – भारत सरकार ने विश्व अर्थव्यवस्था के साथ अन्त:सम्बन्ध स्थापित करने तथा वैश्वीकरण की प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरने से सन् 1991 के मध्य से व्यापक आर्थिक सुधार का कार्यक्रम शुरू किया। वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत आरक्षित उद्योगों की संख्या केवल 2 रह गई है। इसका आशय यह है कि निजी क्षेत्र को अपने विस्तार के पर्याप्त अवसर प्राप्त हो गए हैं। अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्र अब विदेशी निवेश के लिए खोल दिए गए हैं और वे नई औद्योगिक नीति के परिणामस्वरूप विकास की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
  3. विदेशी निवेश में वृद्धि – वैश्वीकरण के बाद अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत में अपने निवेश में वृद्धि की है। इससे देश में उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी का विकास हुआ और रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए। इस प्रकार कहा जा सकता है कि 1991 के बाद देश में विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है और फलस्वरूप अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है।
  4. उपभोक्ता की प्रभुता – वैश्वीकरण के बाद विदेशी एवं स्थानीय उत्पादकों के मध्य परस्पर प्रतियोगिता में वृद्धि हुई है और परिणामस्वरूप अनेक वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें कम हुई हैं। इससे उपभोक्ताओं को श्रेष्ठ वस्तुएँ प्राप्त हो रही हैं। फलस्वरूप उपभोक्ता वर्ग पहले की तुलना में उच्चतर जीवन स्तर का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
  5. भारतीय कम्पनियों को लाभ – वैश्वीकरण ने अनेक भारतीय कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में स्थापित किया है। उदाहरण के लिए टिस्को, टाटा मोटर्स, रैनबैक्सी, हिन्डाल्को, इन्फोसिस आदि। इन कम्पनियों ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने क्रियाकलापों का विस्तार किया है।
वैश्वीकरण से उत्पन्न प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
  1. श्रमिकों के जीवन पर प्रभाव – वैश्वीकरण के कारण श्रमिकों के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता इन दिनों श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन पसन्द करते हैं। इसका आशय है कि श्रमिकों का रोजगार अब सुनिश्चित नहीं है।
  2. छोटे उत्पादकों पर प्रभाव – छोटे उत्पादकों पर वैश्वीकरण का बुरा प्रभाव पड़ा है। विदेशी उत्पादित माल से प्रतियोगिता करने में छोटे उद्योग सक्षम नहीं हैं। परिणामस्वरूप अनेक छोटे उद्योग बन्द हो गए हैं। बैटरी, संधारित्र, प्लास्टिक, खिलौने, टायर, डेयरी उत्पादों एवं खाद्य तेल के उद्योगों की स्थिति अत्यधिक खराब है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत में लघु उद्योगों में कृषि के बाद सबसे अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त है।
  3. सभी लोगों को लाभ नहीं-वैश्वीकरण का लाभ समाज के सभी वर्गों को नहीं मिला है। शिक्षित, कुशल और सम्पन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है। इसके विपरीत, अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समाज का कमजोर एवं गरीब वर्ग वैश्वीकरण के लाभों से दूर है।
  4. विकसित राष्ट्रों का आधिपत्य-वैश्वीकरण की प्रक्रिया विश्व व्यापार संगठन के निर्देशानुसार क्रियान्वित की जा रही है, किन्तु संगठन में विकसित राष्ट्रों का वर्चस्व अधिक है। ये राष्ट्र उन्हीं नीतियों एवं कार्यक्रमों का समर्थन करते हैं जिनसे उन्हें लाभ प्राप्त होता है। श्रमिकों के लिए इन राष्ट्रों ने अपने बाजार नहीं खोले हैं। इसी प्रकार कृषि को दी जाने वाली सब्सिडी पर भी कोई निर्णय नहीं हुआ है। अत: यह आवश्यक है कि विकसित राष्ट्रों के वर्चस्व को समाप्त किया जाए और वैश्वीकरण को विकसित किया जाए जिसमें सभी राष्ट्रों को लाभ हो।
  5. क्षेत्रीय असमानताएँ-वैश्वीकरण से क्षेत्रीय विषमताएँ बढ़ी हैं जिस प्रकार वैश्वीकरण से विकासशील राष्ट्रों की तुलना में विकसित राष्ट्रों को अधिक लाभ मिला है, ठीक उसी प्रकार राष्ट्र के अन्दर भी विकसित क्षेत्रों को पिछड़े क्षेत्रों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त हुआ है। इस प्रकार वैश्वीकरण के लाभ सभी क्षेत्रों के लोगों को प्राप्त नहीं हुए हैं।

बहु-विकल्पीय

प्रश्न 1. निम्नलिखित में कौन-सी क्रिया आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत आती है?
(i) वैश्वीकरण
(ii) उदारीकरण
(iii) निजीकरण
(iv) उक्त सभी।
उत्तर: (iv) उक्त सभी।
प्रश्न 2. नवीन आर्थिक नीति को अपनाया गया –
(i) 1984
(ii) 1988
(iii) 1990
(iv) 1991
उत्तर: (iv) 1991

रिक्त स्थानों की पर्ति कीजिए

  1. प्रशासकीय नियन्त्रणों को कम करके स्वतन्त्र व्यापार की नीतियों को अपनाना ……………………… कहलाता है।
  2. वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में हुई वृद्धि को ……………………… कहा जाता है।
उत्तर:-
  1. उदारीकरण
  2. मुद्रा-स्फीति

सत्य/असत्य

प्रश्न 1. वैश्वीकरण से भारत में गरीबों को अधिक लाभ नहीं मिला है।
उत्तर: सत्य
प्रश्न 2. एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी वह है जो केवल अपने राष्ट्र के लिए उत्पादन करती है।
उत्तर: असत्य
प्रश्न 3. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना सन् 1995 में हुई थी।
उत्तर: सत्य
प्रश्न 4. वैश्वीकरण ने संचार प्रौद्योगिकी का विस्तार किया है।
उत्तर: सत्य
प्रश्न 5. वैश्वीकरण से क्षेत्रीय विषमताएँ कम हुईं।
उत्तर: असत्य।

जोड़ी मिलाइए

                            स्तम्भ अ                                         स्तम्भ ब
  1. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना                                 (क) वैश्वीकरण
  2. नई आर्थिक नीति लागू की गई                                   (ख) विशेष आर्थिक क्षेत्र
  3. उद्योग तथा व्यापार की अनावश्यक प्रतिबन्ध से मुक्त करना      (ग) 1995
  4. विदेशी निवेश एवं विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करना।         (घ) जुलाई 1991
  5. निजी उद्यमियों को उद्योग लगाने हेतु प्रेरित करने की योजना     (ड़) उदारीकरण
उत्तर:-
  1. → (ग)
  2. → (घ)
  3. → (क)
  4. → (ङ)
  5. → (ख)

एक शब्द में उत्तर

प्रश्न 1. विश्व व्यापार संगठन के वर्ष 2006 में कितने सदस्य राष्ट्र थे?
उत्तर: 149
प्रश्न 2. किस वर्ष में भारत को विदेशी मुद्रा संकट का सामना करना पड़ा था?
उत्तर: 1990 में
प्रश्न 3. निर्यात व्यापार में वृद्धि के उद्देश्य से निजी उद्यमियों को उद्योग लगाने हेतु प्रेरित करने की योजना का नाम बताइए।
उत्तर: विशेष आर्थिक क्षेत्र
प्रश्न 4. आर्थिक सुधार कब प्रारम्भ हुए?
उत्तर: वर्ष 1991 में
प्रश्न 5. वर्ष 1951 से 1991 की अवधि में राष्ट्रीय आय में औसत वृद्धि दर कितनी रही?
उत्तर: 5.4.0%

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वैश्वीकरण से किस उपभोक्ता वर्ग को अधिक लाभ हुआ है?
उत्तर: शिक्षित, कुशल और सम्पन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है।
प्रश्न 2. श्रम विभाजन क्या है?
उत्तर: किसी वस्तु की उत्पाद प्रक्रिया को विभिन्न उप-क्रियाओं में बाँटना और प्रत्येक उपक्रिया को अलग-अलग श्रमिकों से कराना श्रम विभाजन कहलाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वैश्वीकरण का सेवा क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर: वैश्वीकरण ने संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवीन लाभप्रद सेवाओं का विस्तार किया है। एक भारतीय कम्पनी द्वारा लन्दन स्थित कम्पनी के लिए पत्रिका का प्रकाशन और कॉल सेन्टर्स इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त डाटा एन्ट्री, लेखाकरण, प्रशासनिक कार्य, इन्जीनियरिंग जैसी कई सेवाएँ भारत में उपलब्ध हैं। ये सेवाएँ विकसित राष्ट्रों को निर्यात की जाती हैं। भारत को ‘सॉफ्टवेयर की सेवाओं के निर्यात के द्वारा बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा का अर्जन हो रहा है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वैश्वीकरण का अर्थ बताइए। वैश्वीकरण से किन लोगों को लाभ हुआ है?
                            अथवा
वैश्वीकरण क्या है? इससे उत्पन्न समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर: वैश्वीकरण – वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने से लगाया जाता है। इसमें प्रत्येक राष्ट्र का अन्य राष्ट्रों के साथ वस्तु, सेवा, पूँजी एवं बौद्धिक सम्पदा का अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान होता है। यह वस्तुतः खुली अर्थव्यवस्था की विचारधारा पर आधारित है जिसमें विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के मध्य व्यापारिक दृष्टिकोण से सार्वजनिक सीमाओं को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है, बल्कि व्यापारिक लेन-देन या तो स्वतन्त्र रूप से या सीमित नियन्त्रण के अधीन चलते रहते हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत सभी व्यापारिक क्रियाओं का अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो जाता है और वे एक इकाई के रूप में कार्य करने लगती हैं।
वैश्वीकरण से उत्पन्न प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
  1. श्रमिकों के जीवन पर प्रभाव – वैश्वीकरण के कारण श्रमिकों के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता इन दिनों श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन पसन्द करते हैं। इसका आशय है कि श्रमिकों का रोजगार अब सुनिश्चित नहीं है।
  2. छोटे उत्पादकों पर प्रभाव – छोटे उत्पादकों पर वैश्वीकरण का बुरा प्रभाव पड़ा है। विदेशी उत्पादित माल से प्रतियोगिता करने में छोटे उद्योग सक्षम नहीं हैं। परिणामस्वरूप अनेक छोटे उद्योग बन्द हो गए हैं। बैटरी, संधारित्र, प्लास्टिक, खिलौने, टायर, डेयरी उत्पादों एवं खाद्य तेल के उद्योगों की स्थिति अत्यधिक खराब है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत में लघु उद्योगों में कृषि के बाद सबसे अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त है।
  3. सभी लोगों को लाभ नहीं - वैश्वीकरण का लाभ समाज के सभी वर्गों को नहीं मिला है। शिक्षित, कुशल और सम्पन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है। इसके विपरीत, अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समाज का कमजोर एवं गरीब वर्ग वैश्वीकरण के लाभों से दूर है।
  4. विकसित राष्ट्रों का आधिपत्य - वैश्वीकरण की प्रक्रिया विश्व व्यापार संगठन के निर्देशानुसार क्रियान्वित की जा रही है, किन्तु संगठन में विकसित राष्ट्रों का वर्चस्व अधिक है। ये राष्ट्र उन्हीं नीतियों एवं कार्यक्रमों का समर्थन करते हैं जिनसे उन्हें लाभ प्राप्त होता है। श्रमिकों के लिए इन राष्ट्रों ने अपने बाजार नहीं खोले हैं। इसी प्रकार कृषि को दी जाने वाली सब्सिडी पर भी कोई निर्णय नहीं हुआ है। अत: यह आवश्यक है कि विकसित राष्ट्रों के वर्चस्व को समाप्त किया जाए और वैश्वीकरण को विकसित किया जाए जिसमें सभी राष्ट्रों को लाभ हो।
  5. क्षेत्रीय असमानताएँ - वैश्वीकरण से क्षेत्रीय विषमताएँ बढ़ी हैं जिस प्रकार वैश्वीकरण से विकासशील राष्ट्रों की तुलना में विकसित राष्ट्रों को अधिक लाभ मिला है, ठीक उसी प्रकार राष्ट्र के अन्दर भी विकसित क्षेत्रों को पिछड़े क्षेत्रों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त हुआ है। इस प्रकार वैश्वीकरण के लाभ सभी क्षेत्रों के लोगों को प्राप्त नहीं हुए हैं।
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